रुद्रप्रयाग: शादी का सीजन शुरू होने जा रहा है। अधिकतर पहाड़ी जिलों में ग्रामीण हाई कैश हाई कैश कर रहा है। हालात इस कदर पहुँच गए हैं कि भूखे मरने की नौबत आन पड़ी है। शहरी समस्याओं को उठाने वाले बहुत मिल जायेंगे लेकिन आजकल इन ग्रामीणों की इस जटिल समस्या पर कोई आगे आने को तैयार नहीं है।
अप्रेल का महिना जैसे ही शुरू हुआ मानों बैंकों में अकाल ही पढ़ गया है, रुद्रप्रयाग में जादातर बैंक में खाताधारक लगातार चार दिन से चक्कर काट रहे हैं, लेकिन लोगों को हर दिन खाली हाथ ही लौटना पड़ रहा है। गुरूवार को भी यह हाल हर बैंक में देखा गया, रुद्रप्रयाग के सुमाडी, मयाली और जखोली बैंकों के आगे भारी संख्या में ग्राहकों का जमावड़ा रहा। वहीं कई ग्रामीण बैंक भी लम्बी कतारों से सजे मिले।
बैंक भी लोगों को कैश ना होने की वजह बातकर ग्रामीणों को निराश ही वापिस लौटा रहे हैं, आपको बता दें कि ग्रामीण 50 किमी से जादा की दूरी तय का बैंक पहुंचता है लेकिन बैंक हर दिन इसी तरह खुलता है और बंद हो जाता है। सायद बैंक में जो पैंसा आता भी है वो पहले के 10 ग्राहक में ही ख़त्म हो जाता है। कोई एटीएम भी काम पर नहीं है, सभी कैश ना होने की वजह से बंद पड़े रहते हैं।
इसी महीने बैसाखी को पुरे उत्तराखंड में हजारों शादियाँ हैं, शादियों में कैश की मांग बढ़ गयी है, हर किसी को बड़ी मात्रा में कैश की दरकार है वहीं बैंक इन लोगों की मांग के अनुसार पूर्ति करने में असमर्थ साबित हो रहे हैं। अब जखोली स्थित एसबीआई शाखा के बाहर जब हमने लोगों ने उनकी समस्याओं को पूछा तो लोगों का कहना था कि पिछले तीन दिनों से बैंक इन लोगों की फजीहत करा रहा है। लेकिन फिर आज भी बिना कैश का ही लौटना पढ़ रहा है।
सुबह साढ़े 10 बजे बैंक खुलता है और 10 बजकर 35 मिनट पर कैश खत्म हो जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि जो कैशियर कुर्शी पर बैठकर आपको कैश दे रहा होता है वो बीच में उठकर कैश लेने के लिए रुद्रप्रयाग रवाना हो जाता है और वह साम 4 बजे थोडा बहुत कैश लेकर बैंक पहुँचता है। लेकिन तब तक बैंक का समय ख़त्म होने के नाम पर ग्रामीणों को ये कहकर लौटा दिया जाता है कि कल कैश मिल जायेगा, लेकिन फिर दुसरे दिन वही दोहराया जाता है।
अब ग्रामीण जाए पर जाए कहां? कई लोगों की पेंशन आई है, कई लोगों के घर में शादी है कई लोग के पास दो वक्त की रोटी खरीदने के लिए पैसा नहीं है, 1000 रूपये निकालने के लिए ग्रामीण को 500 रूपये किराया के रूप में चुकाना पढ़ रहा है, अब समझ में ये नहीं आ रहा है कि इस बात का जिम्मेदार कोन है? अब गांव का मामला है साहब यहां ग्रामीण की कोई सुनने और समझने वाला नहीं है अब वो हर आदमी ने ठान लिया है हमने झेल दिया हम अपने बच्चों को नहीं झेलने देंगे शहर भेज देंगे। ')}