किल्मोड़ा उत्तराखंड के 1400 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर मिलने वाला एक औषधीय प्रजाति है। इसका बॉटनिकल नाम ‘बरबरिस अरिस्टाटा’ है। यह प्रजाति दारु हल्दी या दारु हरिद्रा के नाम से भी जानी जाती है। पर्वतीय क्षेत्र में उगने वाले किल्मोड़े से अब एंटी डायबिटिक दवा तैयार होगी।
इसका पौधा दो से तीन मीटर ऊंचा होता है। पहाड़ में पायी जाने वाली कंटीली झाड़ी किनगोड़ आमतौर पर खेतों की बाड़ के लिए प्रयोग होती है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि यह औषधीय गुणों से भी भरपूर है। कुमाऊं विवि बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग ने इस दवा के सफल प्रयोग के बाद अमेरिका के इंटरनेशनल पेटेंट सेंटर से पेटेंट भी हासिल कर लिया है। विवि की स्थापना के बाद अब तक यह पहला पेटेंट है।
2011-12 में बॉयोटेक विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. वीना पाण्डे, सेंट्रल फॉर सेलुलर एंड मोल्यूक्यूलर बॉयोलॉजी हैदराबाद के पूर्व निदेशक व बीएचयू के प्रो. जीपी दूबे तथा बनारस हिन्दू विवि के पूर्व कुलपति डॉ. लालजी सिंह द्वारा किल्मोड़ा वानस्पतिक नाम बरबरीफ एरीसटाटा पर शोध शुरू किया था। नैनीताल के अयारपाटा क्षेत्र से किल्मोड़ा के सैंपल लिए गए थे।
यह प्रयोग चूहों पर किया गया जो सफल रहा। इसके बाद इंसान को भी किल्मोड़ा से बनी एंटी डायबिटीज दवा दी गई, जो कारगर रही। इसके बाद पेटेंट की प्रक्रिया आरंभ की गई।किल्मोड़ा की जड़, तना, पत्ती से लेकर फल तक का इस्तेमाल होता है। मधुमेह में किल्मोड़ा की जड़ बेहद कारगर होती है। इसके अलावा बुखार, पीलिया और नेत्र आदि रोगों के इलाज में भी ये फायदेमंद है।
इस पौधे की होम्योपैथी में बरबरिस नाम से दवा बनाई जाती है। इस पौधे की जड़ से अल्कोहल ड्रिंक बनता है। इसके अलावा कपड़ों के रंगने में इसका इस्तेमाल होता है। यह प्रजाति भारत के उत्तराखंड-हिमांचल के अलावा नेपाल और श्रीलंका में भी पाई जाती है।
उत्तराखण्ड में इसे किल्मोड़ा, किल्मोड़ी और किन्गोड़ के नाम से जानते हैं। किनगौड़ की जड़ों को पानी में भिगोकर रोज सुबह पीने से शुगर के रोग से बेहतर ढंग से लड़ा जा सकता है। फलों का सेवन मूत्र संबंधी बीमारियों से निजात दिलाता है। इसके फलों में मौजूद विटामीन सी त्वचा रोगों के लिए भी फायदेमंद है।
उत्तराखंड के जंगलों में यह बहुतायत में पाया जाता है, कई लोग इसके कंटीली झाडी से खेतों पर बाड़ लगाते हैं, इसका फल बहुत ही टेंगी होता है। इसे बच्चे ओर बूढ़े सभी पसंद करते हैं, इसकी औषधीय गुणवता की जानकारी ना होने की वजह से लोग इसका पर्याप्त फायदा नहीं उठा पाते हैं। ')}