श्रीकृष्ण की ये बात सुनकर भगवन शिव उन्हें आर्शीवाद देकर युद्ध क्षेत्र से हट गए। भगवन शिव के जाने के बाद श्रीकृष्ण पुनः बाणासुर पर टूट पड़े। बाणासुर भी अति क्रोध में आकर उन पर टूट पड़ा। अंत में श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र निकला और बाणासुर की भुजाएं कटनी प्रारंभ कर दी। एक एक करके उन्होंने बाणासुर की चार भुजाएं छोड़ कर सारी भुजाएं काट दी। उन्होंने क्रोध में भरकर बाणासुर को मरने की ठान ली।
अपने भक्त का जीवन समाप्त होते देख रुद्र एक बार फिर रणक्षेत्र में आ गए और उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा की वो बाणासुर को मरने नहीं दे सकते क्योंकि वो उनका भक्त है। इसलिए या तो तुम मुझसे पुनः युद्घ करो अथवा इसे जीवनदान दो। भगवन शिव की बात मानकर श्रीकृष्ण ने बाणासुर को मरने का विचार त्याग दिया और महादेव से कहा की — हे भगवन जो आपका भक्त हो उसे इस ब्रम्हांड में कोई नहीं मार सकता किन्तु इसने अनिरुद्ध को बंदी बना रखा है। ये सुनकर रुद्र ने बाणासुर को अनिरुद्ध को मुक्त करने की आज्ञा दी। बाणासुर ने ख़ुशी ख़ुशी अपनी पुत्री का हाथ अनिरुद्ध के हाथ में दे दिया उषा ओर फिर दोनो की शादी भी कर दी इन दोनो की शादी का मण्डप आज मे इस मन्दिर मौजूद है-
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