उत्तराखंड में एक गांव ऐसा भी है जहाँ के लोगों की देशभक्ति देख गर्व से आपका सीना भी चौड़ा हो जाएगा। देवभूमि उत्तराखंड वीरों की भूमि के नाम से विख्यात है। यहां के युवाओं की भारतीय सेना के प्रति जज्बा और देशभक्ति देख स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस राज्य को वीरों की भूमि के नाम से पुकारा था। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के जखोली विकासखंड का लुठियाग गांव के नौजवान देश की सेवा के लिए न्यौछावर है।
प्रथम विश्व युद्ध से लेकर स्वतंत्रता संग्राम और आजादी के बाद गांव के वीरों से अपने शौर्य का लोहा मनवाया है। हम आज आपको ऐसे ही बहादुर जवानों से मिलवाने जा रहे हैं जिनके बारे में जान कर आपका सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा।
देश की सेना के प्रति योगदान
इस गांव के कुल 257 परिवार वाले इस गांव से वर्तमान समय में 40 से भी ज्यादा लोग सेना में भर्ती हैं और 20 से भी ज्यादा लोग अर्द्धसैनिक बलों में व पुलिस में कार्यरत हैं। इस गांव के कम से कम 5 युवा प्रतिवर्ष भारतीय सेना की पासआउट परेड का हिस्सा पिछले पांच -छह वर्षों से लगातार बनते आये हैं।
रुद्रप्रयाग जिले के जखोली का लुठियाग गांव देश के योगदान में अपना विशेष महत्त्व अपना विशेष स्थान रखता है। इस गांव के युवाओं में सेना के प्रति एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। एक ओर इस गांव के 40 से अधिक पूर्व सैनिक हैं, जो वर्षों से देश की सेवा कर रिटायर हो चुकें हैं तो वहीँ दूसरी ओर कुछ ऐसे भी पूर्व सैनिक हैं, जिन्होंने 1662 के भारत-चीन युद्ध में भी हिस्सा लिया है।
दो सगे भाई मुरारी सिंह व देव सिंह
वहीँ गांव के कुछ लोग बताते हैं कि भारतीय सेना के प्रति उनके पूर्वजों का लगाव रहा है। प्रथम विश्व युद्ध में इस गांव के दो सगे भाई मुरारी सिंह व देव सिंह ने अंग्रेजों की तरफ से लड़ाई लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। इन दोनों भाईयों का नाम दिल्ली के इंडिया गेट पर भी अंकित है।
आजाद हिंद फौज का हिस्सा रहे दिल सिंह और उमराव सिंह
दिल सिंह और उमराव सिंह शायद ही लोग इन नामों को जानते हों। दिल सिंह और उमराव सिंह वो शहीद हैं जो सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज का हिस्सा रहे चुकें हैं। आजादी के बाद वर्ष 1962, 1971, 1975 और 1999 के कारगिल युद्ध में भी यहां वीर सपूतों ने अपना पराक्रम दिखाया है।
14वीं राष्ट्रीय रायफल के लांस नायक मुरारी सिंह का शौर्य
लुठियाग गांव के 14वीं राष्ट्रीय रायफल के लांस नायक मुरारी सिंह का शौर्य किसी पहचान का मोहताज नहीं है। 14 जून 2000 को आतंकवादियों से लड़ते हुए वे जम्मू क्षेत्र में शहीद हो गए थे। मरने से पहले उन्होंने दो दुश्मनों को अपनी बंदूक से ढेर कर दिया था। बीते वर्ष शहीद का बड़ा बेटा भी सेना में भर्ती हो चुका है, लेकिन गांव में आज तक शहीद स्मारक नहीं बन पाया।
ये गांव भी है उसी राह पर
रुद्रप्रयाग जिले के जखोली ब्लोक में ही एक और गाँव हैं जिसका नाम धारकुड़ी है यह गांव भी किसी से कम नहीं है इस गांव में भी हर एक परिवार सेना से जुड़ा है। किसी बड़े युद्ध से इस गांव के वीरों का सम्बन्ध ना रहा हो लेकिन इस गाँव के हर युवक में देश के लिए मर मिट जाने का जज्बा जरूर है। ')}